कौन है वो–३
कौन है वो – ३
धीरे धीरे मालती बड़ी होना शुरू हो गई, जहां वो सुधा की आंख का तारा थी वहीं बाकी सब की आंख में पड़ा तिनका समान। शायद मालती को उसकी मां के बाद अगर कोई थोड़ा चाहता था वो थे उसके दादाजी, पर अपनी पत्नी के सामने उनकी कुछ खास नहीं चलती थी।
घर के सिंहासन पर अभी तक सुधा की सास का एकछत्र राज था। सारा घर उन्हीं के इशारों पर चलता है, या यूं कहें उनकी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नही हिल सकता था उस घर में।
कहते हैं साथ रहते रहते इंसान जानवरों से भी लगाव बना ही लेता है, पर शायद सुधा की सास इसका एकमात्र अपवाद थी, उन्हें मालती फूटी आंख ना सुहाती, जिस वजह से उन्होंने कभी न तो उसको अपनी गोदी में बिठाया ना ही कभी सुधा को उसकी परवरिश में कोई मदद ही की।
बेचारी सुधा, हर वक्त नन्ही मालती को गोदी में चिपटाए चुप चाप घर के काम निबटाती रहती। यूं भी मालती जन्म से ही काफी कमजोर थी, इसीलिए कोई ना कोई बीमारी उसको बचपन से ही घेरे रहती, कभी खांसी, कभी जुखाम, कभी बुखार तो कभी उल्टी दस्त।
हर बार जब भी मालती बीमार पड़ती दादी का गुस्सा उसे और उसकी मां को कोसने से ही कम होता। पर शायद ईश्वर ने उस बालिका को भले ही शारीरिक तौर पर कमजोर बनाया हो पर कहीं न कहीं जीवित रहने की क्षमता उसमे बहुत बलवती थी, इसीलिए इतनी हारी बीमारी और बुरे बर्ताव के बावजूद मालती बढ़ती ही गई।
दो साल की होते होते सुधा ने एक बार फिर गर्भधारण किया और एक बार फिर रामेश्वर और परिवार की अभिलाषाओं पर तुषारापात हो गया। मालती की छोटी बहन मधु ने जन्म लिया। हालांकि सुधा की सास ने एक बार फिर उसको जी भर कर कोसने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, पर मधु, मालती से कुछ ज्यादा भाग्यवान थी।
उसके नैन नक्श बहुत सुंदर थे और रंगत भी दूधिया थी।
ना चाहते हुए भी पूरे परिवार की लाडली अब मधु थी या यूं कहें जो प्रेम मालती को ना मिल सका वो मधु के हिस्से आ गया। ईश्वर की कृपा से मधु बहुत हृष्ट पुष्ट भी थी।
शीघ्र ही मधु पूरे परिवार की चहेती बन गई।
समय पंख लगा कर आगे बढ़ रहा था, मालती अब 4 वर्ष की हो गई थी, उसमे समय के साथ साथ समझ भी आती जा रही थी। एक बात अच्छी थी दोनो बहने एक दूसरे को खूब चाहती थी।
मालती अपने साथ होते व्यवहार के बावजूद अपनी प्यारी बहन मधु को जी भर कर प्यार करती थी।
जहां मालती सीधी सादी, मृदु भाषी, सौम्य, मितभाषी, और काफी संजीदा थी वहीं मधु उस के ठीक विपरीत शरारती, उद्दंड, और बहुत चंचल थी।
अब मालती पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगी थी, वैसे वो बहुत मेधावी तो नहीं थी पर बहुत लगन से हर कार्य को मन लगा कर करती थी, जिस वजह से शीघ्र ही वो अपनी अध्यापिकाओं की चहेती बन गई।
घर पर भी वो सुधा के साथ उसके हर काम में मदद करने की कोशिश करती खास कर अपनी छोटी बहन मधु का खूब ख्याल रखा करती।
समय निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा था, और मालती का जीवन भी, धीरे धीरे उसने उमर के 10 वें वर्ष में कदम रखा और तब उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिस से उसके जीवन की धारा ही बदल गई।
सुधा एक बार फिर से गर्भवती हो गई, वैसे ये कोई नई बात नही थी, दरअसल वो तकरीबन हर वर्ष ही गर्भधारण कर लेती थी पर मधु के बाद उसकी शारीरिक कमजोरी इस कदर बढ़ गई थी की गर्भ धारण के कुछ समय बाद ही गर्भ ठहर नहीं पाता था।
यहां तक कि डॉक्टर ने सुधा और रामेश्वर दोनो को कई बार ये चेतावनी भी दी थी कि सुधा का स्वास्थ्य उसके गर्भधारण के उपयुक्त नहीं है और गर्भ धारण करने पर उसे तथा होने वाले बच्चे को खतरा हो सकता है।
पर सुधा की सास को समझा पाना शायद किसी के भी बस में नहीं था, उन्हें हर वक्त अपने वंश की चिंता खाए जाती थी। उनके रात दिन के तानों से बचने के लिए सुधा हर बार मन मार कर तैयार हो जाती, इस उम्मीद से की शायद बेटा होने पर उसकी सास का मन पसीज जाए और मालती के प्रति उनका व्यवहार सुधर जाए।
ईश्वर भी शायद सुधा और मालती के प्रतिदिन तिरस्कार से द्रवित हो चुके थे।
इसलिए एक बार फिर सुधा गर्भ धारण कर चुकी थी, और हर बार की तरह उसके परिवार का हर सदस्य इस इंतजार में था की इस बार तो बेटा ही जन्म लेगा।
नन्ही मालती के उपर मां के गर्भ धारण से जिम्मेवारियां बढ़ गई थी, स्कूल जाना, मधु को तैयार करना, उसे साथ लेकर जाना और वापस आकर मां का हाथ बंटाना उसकी रोज की दिनचर्या हो गई थी।
छटी क्लास में पढ़ती मालती, को अपनी मां के स्वास्थ्य के बारे में शायद घर में सबसे ज्यादा चिंता थी। उसकी दादी जो हर समय पोता पोता की रट लगाए रहती थी, इस समय भी सुधा की ज्यादा मदद करने को तैयार नहीं थी। डॉक्टर ने साफ तौर पर सुधा को पूरा आराम करने की सलाह दी थी, पर उनका मानना था की जितना शरीर चलेगा जच्चा उतनी ही मजबूत रहेगी।
आखिर एक बार फिर परिवार की आशाओं और सुधा की दृढ़ संकल्प शक्ति की वजह से प्रसव अब अपने आखिरी पड़ाव पर था।
सुधा के शरीर में खून की कमी परिलक्षित हो रही थी, वहीं डॉक्टर के मुताबिक उसे आयरन की कमी भी थी और साथ ही वो एनिमिक भी हो रही थी।
रोज ढेर सारी दवाएं और मल्टी विटामिन इत्यादि भी सुधा को कुछ ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा रहे थे।
प्रसव अब नवें महीने में था और डॉक्टर के मुताबिक कभी भी उसे प्रसव वेदना हो सकती थी। सुधा को पूरी तरह बिस्तर पर आराम करने की सख्त हिदायत की वजह से न चाहते हुए भी उसकी सास को गृह कार्य संभालना पड़ रहा था, जिस वजह से बेचारी मालती को वक्त बेवक्त अपनी दादी की डांट फटकार सुननी पड़ती थी।
और फिर आखिर वो दिन भी आ पहुंचा जब प्रसव वेदना प्रारंभ हो गई, रात के दूसरे पहर जब दर्द सहनशक्ति पार करने लगा तो रामेश्वर और सोमेश, सुधा को लेकर हॉस्पिटल की तरफ भागे।
सुधा को असह्य पीड़ा हो रही थी, हॉस्पिटल पहुंचते ही उसे तुरंत इमरजेंसी में दाखिल किया गया।
थोड़ी ही देर बाद डॉक्टर बदहवास सी इमरजेंसी से बाहर आई, और रामेश्वर को लताड़ते हुए बोली, आप अब तक किसका इंतज़ार कर रहे थे।
मरीज की हालत नाजुक है, बच्चा, बच्चेदानी के अंदर घूम गया है, हमे तुरंत ऑपरेशन करना होगा। सुधा का शरीर बहुत कमजोर है, मैने आपको पहले ही कहा था, पर आप लोग मानते कहां हो।
अब जल्दी से दो यूनिट खून डोनेट कीजिए, ऑपरेशन के दौरान खून की जरूरत पड़ सकती है।
और ईश्वर से प्रार्थना कीजिए की मां और बच्चे को कुछ न हो, हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।
सुबह चार बजे डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकल कर आई, उनके चेहरे पर छाई उदासी की रेखाएं देख कर रामेश्वर का दिल किसी अनहोनी से कांप उठा।
उसने बहुत हिम्मत कर के पूछ ही लिया, डॉक्टर साहिबा सब अच्छा है ना।
जवाब में डॉक्टर ने सर झुका कर जवाब दिया रामेश्वर जी हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, पर अफसोस हम सिर्फ बच्चे को ही बचा पाए, सुधा को नहीं।
पहली बार रामेश्वर सुन कर भी नही समझ पाया, उसने फिर कहा, सुधा ठीक है ना......
डॉक्टर ने सर हिला दिया और उसे जड़वत छोड़ कर अपने केबिन की तरफ बढ़ गई।
शायद पहली बार रामेश्वर को सुधा पर जाने अंजाने किए गए अपने गलत व्यवहार का आभास हुआ, और पहली बार उसे समझ आया की वो सुधा से कितना प्यार करता था, पर सुधा उसकी सब बातों से बेखबर उसे छोड़ कर जा चुकी थी...... दूर बहुत दूर..... पर जाते जाते भी वो उसे एक अनमोल तोहफा देकर गई थी।
हां सुधा ने आखिरकार रामेश्वर को उसके घर का चिराग दे दिया था, भले ही उसके लिए खुद उसके जीवन की ज्योति बुझ गई।
रामेश्वर, वहीं जमीन पर धम्म से बैठ गया और फूट फूट कर रोने लगा........
क्रमश:
आभार – नवीन पहल – ०१.०५.२०२,२ 💐🙏🏻🌹❤️
# नॉन स्टॉप 2022
Parangat Mourya
13-Feb-2023 10:17 PM
Khoob 💐👍
Reply
सृष्टि सुमन
09-Feb-2023 07:52 PM
Very nice
Reply
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
09-May-2022 07:52 PM
वाह वाह क्या बात हैं👌 आँखों का तारा, आँखों में पड़ा तिनका वाओ😂👏 कुछ लोगों का कुछ हों ही नहीं सकता उसका सबसे बड़ा उदाहरण सुधा के सास-ससुर है। 😆 मुझे सुधा के लिये बुरा लग रहा है। पर कहानी बहुत ही ज्यादा मनोरंजक हो गयी है। कहानी के हर भाग में ट्विस्ट पर ट्विस्ट दे रहे है आप। पढ़ने में बड़ा मजा आ रहा है, ऐसा लग रहा हैं कोई मूवी चल रही हों आँखों के सामने। 😍 प्लीज नये पार्ट्स जल्दी से जल्दी लाते रहिएगा।
Reply